चींटी आवाज़ नहीं करती
और केकड़ो सी
हसरत भी नहीं होती
पर अपने मिटटी के ढेर से बने
घर से हमें शिल्पकार होने
का एहसास करा देती है
वर्षा आती है
और फिर वो कुछ मरे हुए
कुछ छोरे हुए को समेट
एक साथ मिलकर इस
विपत्ति का सामना करती है
हमें ढकने के लिए
घर का मुंडेर मिल जाता है
और हम अगले वर्षा का
इंतज़ार करते हैं
फिर से उस मुंडेर के निचे बैठ
नाश्ता करते हुए
और बिजली के कड़क से घबराकर
घर के भीतर चले जाते हैं
हमें वो आवाज़
साफ़ सुनाई दे जाती है
पर वो चींटियाँ
अपने छोटे से जीवन काल में
हमें बहुत कुछ बता जाती है
अपने मूक आवाज़ से
वर्षा की बूंदों से लरते हुए
इस आवाज़ को सुनने
में कई वर्षा आती हैं
और जाती हैं
एक चिंटी के लिए
वो वर्षा की पहली बूँद
एक सागर जैसा है
और हमारे लिए मौसम
बदलने और दिनचर्या बदलने
का पैगाम......