Saturday, May 12, 2012

आज ये फैसला कर दे मेरे रब्बा

जलते हुए दीपक को बुझाया किसने ,
ये आफताब बेवक्त चुराया किसने

वो तो न था कोई किरेदार साहब
तो भला उसको आजमाया किसने

दर -ओ -दिवार पे टंगी हुई तश्वीर ,
उसके दिल को समझाया किसने

गुल की खबर रखता है शहर
कांटो को खुदा अपनाया किसने

छुट गए थे कुछ बेदर्द साए
उसकी रूख को फिर मुस्कुराया किसने

आज ये फैसला कर दे मेरे रब्बा
कि तुझको खुदा बनाया किसने

2 comments:

  1. बहुत बहुत सुन्दर रचना "आज यह फैसला कर दे मेरे रब्बा
    कि तुझे खुदा बनाया किसने "सुन्दर पंक्तियाँ
    आशा

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