Saturday, November 3, 2012

ए वक़्त अब मुझको बता दे , तेरा क्या इरादा है

इक कलम  रखा हुआ है ,काग़ज़ भी आज सादा है 
ए वक़्त अब मुझको बता  दे , तेरा क्या इरादा है

एक पतंग की तरह से है हमारी ज़िन्दगी,
रब के हाथों में ही इस ज़िन्दगी  का धागा है 

रस्म-ओ-रिवाज़ ,रंग-रूप हैं बहुतेरे मगर 
एक ही काशी है और एक ही तो काबा  है 

शेख जी उन मस्जिदों में ही नहीं रहता खुदा 
है सच जहाँ  कमतर और झूठ बहुत ज्यादा है  

अभी बस  समंदर में उतारी है अपनी कश्तियाँ
खानाबदोशों का सफ़र, अब तलक आधा है  

ले चलो मुझको भी उस शहर में ए दोस्तों 
हो नहीं कोई वजीर ,न कोई जहाँ प्यादा है 

न वो रहे गुमसुम कभी,न ये रहे सादा कभी 
काग़ज़ों से कलम का एक ही बस वादा है 

आज भी लिखता  हैं वो  नील आँखों का बयाँ 
सोया नहीं है,काग़ज़ों में अब तलक जागा है 

Monday, June 18, 2012

न जाने क्यूँ

न  जाने  क्यूँ  वो  अब  तक  कशमकश  में  हैं ,
निशाँ   उनके  जब  खींचे  अक्स  अक्स   में  हैं  ! 
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स्याह  रातों  में  न  जाने  फिर  वही  सबा  आई 
वो  लेके   मेरे  पास  मेरा  दिया  आईना  आई  
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आमद खुदाई का जिसे बदस्तूर रहा होगा 
गैरत में ढल जाना उसे  मंज़ूर रहा होगा 

वो हल जो आज कर रहा है खेत को रौशन 
कच्चा था उसका लोहा कभी बेनूर रहा होगा 

मेरी बेगुनाही का सबूत मांगे मेरा खुदा
मेरी तरह वो भी सनम मजबूर रहा होगा 

ये भरसक जगी  आँखें इक राज़ खोल दे 
इनमे भी तुम्हारा हि सुरूर रहा होगा 

ये सोचता है कौन दिया नदिया में बहाकर 
डूबाने का उन पे भी तो कसूर रहा होगा 

Saturday, May 12, 2012

आज ये फैसला कर दे मेरे रब्बा

जलते हुए दीपक को बुझाया किसने ,
ये आफताब बेवक्त चुराया किसने

वो तो न था कोई किरेदार साहब
तो भला उसको आजमाया किसने

दर -ओ -दिवार पे टंगी हुई तश्वीर ,
उसके दिल को समझाया किसने

गुल की खबर रखता है शहर
कांटो को खुदा अपनाया किसने

छुट गए थे कुछ बेदर्द साए
उसकी रूख को फिर मुस्कुराया किसने

आज ये फैसला कर दे मेरे रब्बा
कि तुझको खुदा बनाया किसने

Saturday, April 21, 2012

रू-ब-रू



वो पहली किरण और तेरा चेहरा ,
बादलों में भी उभर आई तेरी ही तश्वीर ,
हर सांस तेरे बोलों पर थिरकने लगी ,
तेरे याद में वादियाँ महकने लगी ,

सूरज की लालिमा ने तेरे माथे की बिंदिया की यादें दिलाईं

चहकने लगे   पंछी    जैसे तेरी चुरियाँ मुझे जगाने आयीं
शाख के पत्ते झूमने लगे , होने लगा तेरे पायलिया का गुमान ,
मिटटी की सोंधी खुशबू से बरबस आया तेरे हथेलियों की हिना का ध्यान ,

और तभी एक पुरवैय्या आई और एक सुंदर ख्वाब टूट गया
और सामने ज़िन्दगी रू-ब-रू करने आ गयी थी मुझसे ...