Saturday, April 21, 2012

रू-ब-रू



वो पहली किरण और तेरा चेहरा ,
बादलों में भी उभर आई तेरी ही तश्वीर ,
हर सांस तेरे बोलों पर थिरकने लगी ,
तेरे याद में वादियाँ महकने लगी ,

सूरज की लालिमा ने तेरे माथे की बिंदिया की यादें दिलाईं

चहकने लगे   पंछी    जैसे तेरी चुरियाँ मुझे जगाने आयीं
शाख के पत्ते झूमने लगे , होने लगा तेरे पायलिया का गुमान ,
मिटटी की सोंधी खुशबू से बरबस आया तेरे हथेलियों की हिना का ध्यान ,

और तभी एक पुरवैय्या आई और एक सुंदर ख्वाब टूट गया
और सामने ज़िन्दगी रू-ब-रू करने आ गयी थी मुझसे ...

1 comment:

  1. very nice creation ......thanks for visiting my bog, appreciable .....welcome

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